एक ही डबल फोर्टिफाइड साल्ट को दो अलग अलग कीमतों में खरीदने का कारनामा
मनचाही खरीद फरोख्त से राज्य कर्मचारी कल्यण निगम के अधिकारियों ने सरकार को लगाया 30 करोड़ का चूना
मैनफोर्स
लखनऊ। सूबे की भाजपा सरकार एक तरफ भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों पर अंकुश लगाने का दम भर रही है तो वही दूसरी ओर सरकार के राजनेता, नौकरशाह सरकार के भ्रष्टाचार नियंत्रण पर अंकुश लगाने के मंसूबे पर पानी फेरने का काम कर रहे है। इसका एक छोटा सा उदाहरण मैनफोर्स समाचार पत्र ने अपने पूर्व के अंकों में प्रकाशित किया। उसी के क्रम में पुन: उक्त समाचार की अगली कड़ी इस प्रकार से पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहा है। पाठकों को बता दे कि खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग उत्तर प्रदेश की एजेन्सी राज्य कर्मचारी कल्याण निगम के अधिकारियों स्वयं की स्वार्थ सिद्ध के लिए धन के लोभ में अपनी मनचाही कंपनियों को खाद्य उत्पादों की क्रय-विक्रय हेतु निलाली गई निविदा में लाभान्वित करने के उद्देश्य से निकाली गई निविदा में खुलेआम हेरफेर किया जा रहा है। मामले की शिकायत भी लोगों ने की। मगर ऊंची रसूख के दम पर भ्रष्टïचारियों का परचम बुलंद रहा। पाठकों को बता दें कि सरकार एक है। राज्य एक है। मगर एक ही राज्य में एक उत्पाद की दो अलग कीमते निर्धारित कर, उत्पादों का क्रय-विक्रय किया जा रहा है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की एजेन्सी राज्य कर्मचारी कल्याण निगम डबल फोर्टिफाइड साल्ट को दो अलग-अलग कीमतों पर खरीद रहा है। पाठकों को बता दें कि उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ जहां एक तरफ वाइब्रेन्ट ग्लोबल कंपनी से डबल फोर्टिफाइड साल्ट को 8 रूपये 50 पैसे मे खरीद रहा है तो वही खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की एजेन्सी कर्मचारी कल्याण निगम अंकुर केम फूड कंपनी से वही डबल फोर्टिफाइड साल्ट 11 रूपये 97 पैसे मे खरीद रहा है। अर्थात तीन रूपया सैत्तालिस पैसे मंहगा खरीद रहा है। इस नमक की खरीद में अजीबोगरीब असमंजश देखने को मिल रहा है। दोनो एजेन्सिया प्रदेश के दस-दस जनपदों मे नमक की आपूर्ति कर रही हैं। जबकि दोनों कंपनियों द्वारा नमक आपूर्ति किये जाने वाले जनपदों में तीन जनपद फर्रूखाबाद, इटावा और औरेया कामन जनपद है। अर्थात यह कहा जा सकता है कि एक ही सरकार के एक ही राज्य के तीन जनपदों में एक ही खाद्य उत्पाद में की कीमत में 3 रूपये 47 पैसे का बड़ा अंतर देखने को मिल रहा है। अर्थात यह अन्तर 30 करोड़ रूपये का भारी अन्तर है। इस अन्तर को देखते हुए कहाकि जा सकता है कि दाल में कुछ काला है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के अधिकारी अंकुर केम फूड कंपनी को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से अधिक कीमत पर नमक खरीद कर रहे है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की नोडल एजेन्सी कर्मचारी कल्याण निगम के अधिकारी उक्त कंपनी से साठगांठ करके सरकार को 30 करोड का चूना लगा रहे है। आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के 10 जनपदों सिद्धार्थनगर, संकबीरनगर, फैजाबाद, मऊ, मेरठ, फर्रूखाबाद, मुरादाबाद, हमीपुर, इटावा और औरेया में एनीमिया नामक बीमारी से पीडित मरीजों को खिलाने वाली डबल फोर्टिफाइड नमक का वितरण कराने के कार्य का जिम्मा सरकार ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग को दिया था। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग ने यह कार्य अपनी एजेन्सी राज्य कर्मचारी कल्याण निगम के माध्यम से कराना प्रारम्भ किया था। उपरोक्त कार्य को ही विभाग ने उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ लि0 से भी सूबे के पीलीभीत, देवरिया, इटावा, फर्रूखाबाद,औरेया, प्रतापगढ़, बांदा, लखनऊ, शाहजहापुर और बदायूं जनपद में आपूर्ति करने का जिम्मा सौंपा था। वही खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग सिद्धार्थनगर, सन्तकबीरनगर, फैजाबाद, मऊ, मेरठ, फर्रूखाबाद, मुरादाबाद, हमीपुर, इटावा, और औरेया आदि जनपद में आपूर्ति करा रही है। आश्र्चयजनक बात यह है कि इन दोनों एजेन्सियों को वितरण के लिए आवंटित जनपदों में से तीन जनपद फर्रूखाबाद, इटावा और औरेया कामन है। अर्थात एक ही जैसे तीन जनपदों में एक ही एक ही नमक के उत्पाद को दो अलग-अलग कीमतों पर खरीद कर आपूर्ति किया गया। जिसके इस नमक के उत्पाद की बिक्री से उपभोक्ताओं में भी भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
बैक डोर से दे दिया 100 करोड़ का ठेका
सूबे में नियमों और कानूनों को ताक पर रखने की प्रथा आम हो गई है। आज नियम और कानून मात्र मजाक बन कर रह गये है। यही कारण है कि जिस कम्पनी को ब्लैक लिस्टेड करना चाहिए था। जिसकी 6 करोड रूपये की सिक्युरिटी मनी को जब्त करना चाहिये था। आज उसकी कंपनी को नियम और कानून को ताक पर रखकर खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की एजेन्सी कर्मचारी कल्याण निगम ने उसे बगैर निविदा के 100 करोड़ का ठेका बैक डोर से दे दिया। आपको को बता दें कि एनीमिया पीडि़त लोगों के लिए डबल फोर्टिफाइड नमक के वितरण के लिये पूर्ववर्ती समाजवादी पार्टी की सरकार ने नवम्बर 2016 मे अंकुर केम फूड कंपनी को सूबे के जनपद सिद्धार्थनगर, सन्तकबीरनगर, फैजाबाद, मऊ, मेरठ, फर्रूखाबाद, मुरादाबाद, हमीपुर, इटावा और औरेया का ठेका दिया था। उपरोक्त जनपदों में नमक की आपूर्ति को एक वर्ष तक करना था। मगर अंकुर नमक वालों ने तीन महीने दिसम्बर 2016 जनवरी 2017 और फ रवरी 2017 मे आपूर्ति करने के बाद सरकार को बिना कोई कारण बताये नमक की आपूर्ति करना बन्द कर दी। अंकुर केम फूड को एनिमिया पीडि़त लोगों को पूरे एक वर्ष तक बिना किसी अन्तराल के डबल फोर्टिफाइड साल्ट को प्रदेश के 10 जिलों में आपूर्ति करना था। करीब एक साल बाद बनायी गई कमेटी को यह पता करना था कि उपरोक्त डबल फोर्टिफाइड नमक के खाने से एनिमिया पीडि़त लोगों फायदा हुआ या नहीं। मगर सरकार के इस अहम प्रोजेक्ट को विभाग के अधिकारी और कंपनी ने संयुक्त रूप से पलीता लगाने का काम किया। अंकुर केम फूड ने डबल फोर्टिफाइड नमक को तीन महीने की आपूर्ति किया और करोड़ों रूपये का भुगतान लेकर फ रार हो गयी। जबकि नियमानुसार अंकुर केम फूड के इस कृत्य के लिये विभाग को चाहिए था कि उसे ब्लैक लिस्टेड कर उसकी सिक्योरिटी मनी को जब्त कर लेना चाहिए था। मगर विभाग के अधिकारी भी चोर-चोर मैसेरे भाई की कहावत को चरितार्थ करते हुए कंपनी के मालिकान पर अपनी दयादृष्टि बनाये रहे। जबकि टेन्डर की धारा 10:18 मे यह प्रावधान था कि आपूर्ति न करने पर सिक्योरिटी मनी जब्त कर ली जाये और कम्पनी को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया जाये। मगर अंकुर केम फूड को ब्लैक लिस्ट में डालने और सिक्योरिटी मनी जब्त करने के बजाय जनवरी 2018 मे बगैर निविदा के 100 करोड़ के डबल फ फोर्टिफाइड साल्ट का ठेका कर्मचारी कल्याण निगम ने दे दिया। अंकुर कंपनी को फ ायदा पहुंचाने के लिये कर्मचारी कल्याण निगम के अधिकारियो ने अनुबंध संख्या 15 पर शब्दों मे हेरा-फेरी करते हुए उसमे बाद में एक लाइन जोड़कर इस बार बैकडोर से अंकुर कंपनी को नमक को काम दिया गया। जबकि निविदा में किसी भी प्रकार का छेड़छाड़ नही होने की बात कर्मचारी कल्याण निगम ने अपने ही अनुबंध के अनुबंध संख्या 32 पर लिखा है। इसके बावजूद निविदा के सारे नियम और कानून को ताक पर रखकर लगभग 100 करोड़ के डबल फोर्टिफाइड नमक का ठेका अंकुर कंपनी को दिया गया। ऐसा करके खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की एजेन्सी कर्मचारी कल्याण निगम ने सूबे की भाजपा सरकार की भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की मुहीम पर कालिख पोतने का काम किया है। जब इस मामले की गहराई से अध्ययन किया गया तो परत दर परत भ्रष्टाचार की पोल स्वत: खुलती गई और पता चला कि कैसे अंकुर केम फूड कंपनी को 100 करोड़ का ठेका देने के लिए अधिकारियो ने सारे नियम कानून ताक पर रख दिया। आपको बता दे कि एक तरफ आम आदमी जब किसी सरकारी को ठेके को लेना चाहता तो उसे 10 लाख का काम लेने के लिये निविदा प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। जबकि एक अंकुर केम फूड कंपनी है। जिसे ब्लैक लिस्टेड करने के बजाय अधिकारी 100 करोड़ का ठेका देकर घूसखोरी का स्वाद चखने में मशगूल है।